छठ पूजा : चार दिनों तक सूर्य देव के पूजन की तैयारी तेज
- 18 अक्टूबर यानी बुधवार से शुरू हो रही छठ पूजा को लेकर व्रतियों ने तैयारी तेज कर दी है. 21 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पूजा का समापन होगा.
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वाराणसी : बताते चलें कि संतान प्राप्ति और पुत्रों के दीर्घायु व यशस्वी होने की कामना पूर्ति के लिए कार्तिक मास की छठ को सूर्य भगवान की उपासना करने की परंपरा सदियों से मनाई जाती चली आ रही है. दीपावली के बाद डाला छठ की तिथि चतुर्थी यानी 18 नवंबर बुधवार से प्रारंभ हो रही है 21 नवंबर तक छठ पूजा के दौरान सूर्य भगवान उदय होने तक उपासना की जाएगी. 4 दिनों तक चलने वाली इस पूजा को धूमधाम से मनाने के लिए घरों में साफ-सफाई के साथ ही बाजारों से खरीददारी का दौर शुरू हो गया है जिसके चलते बाजारों में भी चहल-पहल बढ़ गई है.
इस पर्व को मनाने के लिए वाराणसी परिक्षेत्र में मुंबई दिल्ली गुजरात कोलकाता आदि महानगरों में रहने वाले बड़ी संख्या में परदेसी घर वापस लौट रहे हैं. छठ पूजा को लेकर तालाबों नदियों के किनारों को साफ किया जा रहा है. डाला छठ व्रत का मुख्य प्रसाद ठेकुआ होता है. ठेकुआ गेहूं का आटा गॉड और देसी घी से बनाया जाता है. इस प्रसाद को मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर बनाया जाता है. नारियल पपीता सेब अनार कंद सुचनी अकेला गागल एक सिंघाड़ा शरीफा कंदा संतरा अनानास नींबू मूली अदरक पान सुपारी हल्दी कोहड़ा व मेवा आदि का गाय के दूध के साथ अर्घ्य दिया जाता है. सूर्य देव को यह दान बांस के बने बर्तन में देना शुभ होता है. बांस के बर्तन की अनुपलब्धता होने पर इसे सूप या पीतल के बर्तन से भी दिया जा सकता है.
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सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के बाद दूसरे दिन सभी वृत्ति पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं सुबह से व्रत के साथ इस दिन गेहूं आदि को धोकर सुखाया जाता है. दिन भर के व्रत के बाद शाम को पूजा करने के बाद व्रती खरना करते हैं. इस दिन गुड़ की बनी हुई चावल की खीर और घी में तैयार रोटी वृत्ति ग्रहण करते हैं. अलग-अलग स्थानों पर छठ पूजा मनाने की परंपरा भी अलग-अलग है. कई स्थानों पर खरना प्रसाद के रूप में अरवा चावल दाल सब्जी आदि सूर्य भगवान को भोग लगाई जाती है. इसके अलावा केला सिंघाड़ा भी प्रसाद के रूप में सूर्य देव को चलाया जाता है. खरना प्रसाद सबसे पहले प्रति खुद बंद कमरे में ग्रहण करते हैं बाद इसके पूजन में शामिल अन्य श्रद्धालुओं को खरना प्रसाद वितरित किया जाता है.
ज्योतिषाचार्य विमल जैन बताते हैं कि इस बार चार दिवसीय छठ पूजा का विधान है. बताते हैं कि 18 नवंबर को छठ पूजा के शुभारंभ पर नहाए खाए, 19 नवंबर को खरना प्रसाद, 20 नवंबर को अस्त हो रहे सूर्य देव को अर्घ देने तथा 21 नवंबर को उदय होते सूर्य देव को अर्घ देकर छठ पूजा का समापन किया जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि विधि विधान से छठ पूजा करने से व्रतियों की मनोकामना भगवान भास्कर अवश्य पूरी करते हैं.
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