रिसर्च लैबोरेट्री जनक डॉक्टर शांति स्वरूप भटनागर का बीएचयू से रहा है गहरा नाता
- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलगीत के जन्मदाता डॉ शांति स्वरूप भटनागर को रिसर्च लैबोरेट्री का जनक भी माना जाता है. अपनी कविता से काशी को सर्व विद्या की राजधानी के रूप में लोकप्रिय बनाने वाले डॉक्टर भटनागर का बीएचयू से काफी गहरा नाता रहा है.

वाराणसी. डॉ शांति स्वरूप भटनागर की पुण्यतिथि का मौका आया तो एक बार फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने उनकी बौद्धिक क्षमता के साथी विश्वविद्यालय को वैश्विक पटल पर पहचान दिलाने के लिए हृदय से याद किया. डॉ शांति स्वरूप भटनागर का जन्म 21 जनवरी 1894 को शाहपुर में हुआ था. बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के डॉक्टर भटनागर ने शिक्षा प्राप्त कर वर्ष 1921 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापक के रूप में नियुक्ति पाई. डॉक्टर भटनागर ने विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना मालवीय जी के आग्रह पर ही विश्वविद्यालय मैं अध्यापन कार्य शुरू किया और रसायन शास्त्र विभाग के पहले अध्यक्ष भी बने. अपने कार्यकाल के 3 साल में ही उन्होंने बीएचयू में भौतिक रसायन को देश में काफी ऊंचा स्थान दिलाया.
डॉक्टर भटनागर ने बीएचयू में देश के पहले फिजिकोकेमिकल रिसर्च स्कूल की स्थापना की. जिसमें वस्तुओं के गुणधर्म और प्रकृति का पता लगाया जाता था. विश्वविद्यालय से उम्दा केमिस्ट निकलकर देश की सेवा करें इसके लिए उन्होंने प्रयोगशालाओं पर भी काफी काम किया. मालवीय जी से सीधे तौर पर संपर्क में रहे डॉक्टर भटनागर मैं रिसर्च और शोध के लिए देश व विदेश से आधुनिक मशीनें बीएचयू के लिए मंगवाई. उन्हीं के शोधों का परिणाम था कि उनके पास देश विदेश के संस्थानों से अनुसंधान को बढ़ावा देने के आमंत्रण आने लगे. डॉक्टर भटनागर नहीं बीएचयू में देश के सर्वप्रथम रिसर्च लैबोरेट्री की शुरुआत की. इस कारण उन्हें रिसर्च लैबोरेट्री का जनक भी माना जाता है.
बीएचयू के रसायन शास्त्र विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रोफेसर डीएस पांडे बताते हैं कि बीएचयू में रहते हुए डॉक्टर भटनागर ने देश में सबसे पहले इंडस्ट्री रिसर्च का शुभारंभ किया था जिसके चलते देश को कई बड़े केमिस्ट भी मिले. उन्होंने बताया कि डॉक्टर भटनागर नहीं सबसे पहले बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का उर्दू भाषा में कुल गीत रचा था. बाद इसके उन्होंने इसे हिंदी और अंग्रेजी भाषा में भी अनुवाद किया. इस गीत को भारत के तमाम विश्वविद्यालयों और संस्थानों के कुल गीत में से सबसे बेहतर माना जाता है.
विश्वविद्यालय के पूर्व शोधार्थी डॉक्टर्स शुभनीत कौशिक ने बताया कि डॉक्टर भटनागर ने रसायन विभाग में हुए वैचारिक चोरी यानी प्लेगेरिज्म पर विश्वविद्यालय प्रशासन से शिकायत दर्ज कराई थी. जिसके चलते विज्ञान विभाग में उनके विरुद्ध माहौल भी तैयार किया गया. इससे आहत होकर डॉक्टर भटनागर ने विश्वविद्यालय को छोड़ना उचित समझा. विश्वविद्यालय को गुड बाय कहने के बाद डॉक्टर भटनागर ने लाहौर विश्वविद्यालय को ज्वाइन कर लिया. उन्होंने बताया कि 1 जनवरी 1955 को दिल्ली में उनका निधन हो गया. बताया कि डॉ भटनागर ने जीवन भर विश्वविद्यालय की उन्नति को लेकर कार्य किया उनका बीएचयू से गहरा नाता रहा था.
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