आज भी काशी के कूप का पानी पीकर किया जाता भगवान धन्वंतरि को नमन
- मंथन के दौरान निकले रत्नों में से सर्वश्रेष्ठ रत्न अमृत कलश को लेकर समुद्र से प्रकट हुए भगवान धन्वंतरि के जीवन लीला से जुड़े कूप यानी कुआं आज भी वाराणसी में मौजूद है. धनतेरस के दिन कुए का पानी पीकर श्रद्धालु भगवान धन्वंतरि की जयंती मनाते हैं.
वाराणसी. दीपावली के त्योहारों की संख्या में धनतेरस का अपना विशेष महत्व है. धनतेरस के त्योहार को भगवान धनवंतरी की जयंती के रूप में मनाया जाता है. चूंकि कलश लेकर समुद्र से अवतरित हुए हैं इस कारण भगवान धन्वंतरि की जयंती पर बर्तन खरीदने की परंपरा है. भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक भी माना जाता है.
इसको लेकर एक किवदंती भी है कि भगवान धनवंतरी काशी राज्य के रूप में पूजे जाते हैं. काशी के राजपरिवार में उनको पुत्र के रूप में मान्यता मिली है साथ ही काशीराज धन्य के कुल में जन्म लेने की वजह से वह धनवंतरी के रूप में विख्यात हुए. काशी के मध्य सर क्षेत्र के विख्यात महामृत्युंज्येश्वर मंदिर के तीसरे मंजिल पर मौजूद प्राचीन कुए को आज भी धन्वंतरी कूप के रूप में माना जाता है.
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प्राचीन किवदंती के अनुसार महाभारत काल के राजा परीक्षित को विधान के अनुसार डसने जा रहे तक्षक नाग व संजीवनी के दम पर राजा को बचाने जा रहे आयुर्वेद के जनक धनवंतरी का मिलन नागराज से इसी स्थान पर हुआ था. नागराज ने अपने विश्व दंत से एक हरे भरे पेड़ को छार कर कर दिया था जबकि अपनी चमत्कारी औषधि से आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि ने उस झाड़ सूखे वृक्ष को पल भर में हरा भरा कर दिया था. विधि का विधान कहीं मिथ्या ना हो जाए इस संदेह को मन में पाल नागराज तक्षक ने छल पूर्वक भगवान धन्वंतरि की पीठ पर 2010 का प्रहार किया ताकि वह अपनी औषधि का लेप अपनी पीठ पर ना कर सके. पंचतत्व में विलीन होने से पहले भगवान धन्वंतरी ने अपनी चमत्कारी औषधियों को काशी के इसी कूप में डाल दिया था. तभी से काशी के लोग भगवान धन्वंतरी को याद कर इस कुएं का पानी पीकर जयंती पर उनका नमन करते हैं.
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