माता अन्नपूर्णा का महाव्रत कल से शुरू फलाहार रहेंगे व्रती
- माता अन्नपूर्णा का 17 दिवशी महाभारत कलयानी 5 दिसंबर से शुरू हो रहा है यह महाव्रत 20 दिसंबर को समाप्त होगा. अपना जीवन सुख समृद्धि और धन धन से पर पूर्ण बनाने की कामना को लेकर रखे जाने वाले इस महाव्रत के दौरान वृत्ति फलाहार रहकर पूजा आराधना करेंगे.
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वाराणसी. ऐसी मान्यता है कि माता अन्नपूर्णा व्रत की कथा का उल्लेख भविष्योत्तर पुराण में मिलता है. इसका वर्णन त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने किया तो द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने भी इससे संबंधित उपदेश दिया. काशी रहस्य में कहा गया है कि भवानी सब ने निशीदतां प्रदक्षिणा कृत्य तथा यथा सुखम यानी जो सुख योग आदि से प्राप्त नहीं होता है वह भवानी अन्नपूर्णा के मंदिर में जाकर पूजा आराधना एवं मंदिर की पैदल प्रदक्षिणा करने से प्राप्त हो जाता है.
माता अन्नपूर्णा के इस महाव्रत में व्रती 17 गांठ वाला धागा धारण करते हैं. इसमें महिलाएं बाय व पुरुष दाहिने हाथ में इसे धारण करते हैं. इसमें अन्न का सेवन करना वर्जित है. केवल एक वक्त फलाहार किया जाता है. मां अन्नपूर्णा के इस व्रत में नमक का सेवन करना भी वर्जित है. 17 दिन तक चलने वाले इस महा व्रत का उद्यापन 20 दिसंबर को होगा. उस दिन धान की बालियों से मां अन्नपूर्णा के गर्भ ग्रह समेत मंदिर पर सर को सजाया जाएगा और धान के बाली का प्रसाद 1 दिसंबर को मंदिर प्रशासन की ओर से वितरित किया जाएगा. एक और मानवता की बात करें तो पूर्वांचल के किसान अपनी फसल की पहली धान की बाली को प्रसाद के रूप में दूसरी धान की फसल में मिलाते हैं. ऐसा करने से उनका मानना है कि फसल में बढ़ोतरी होती है.
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इस संबंध में मां अन्नपूर्णा देवी मंदिर के महंत रामेश्वर पुरी कहते हैं कि मां अन्नपूर्णा का व्रत पूजन दैविक भौतिक का सुख प्रदान करता है और अन्य धन ऐश्वर्य की कमी को दूर करता है.
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