कल्प मास मैं आकाशदीप जलाकर सुधारें पुरखों की सद्गति
- कल्प मास यानि मोक्ष के देवता भगवान विष्णु तक पहुंचने का मार्ग, मतलब हिंदू पंचांग कैलेंडर के अनुसार अश्विन मास को कल्प मास के रूप में माना जाता है. इस मास में विधि विधान से पूजा करने करने के साथ ही आकाशदीप जलाकर भगवान विष्णु की स्तुति करने वालों के पुरखे भी परलोक में सद्गति को प्राप्त होते हैं.
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वाराणसी . कल्प मास में विधि विधान से पूजा करने वाले जातकों को जगत के पालक भगवान विष्णु की कृपा तो मिलती ही है, वही हरि का नाम लेने वालों पर माता लक्ष्मी भी अपनी अनुकंपा बरसाती हैं. शास्त्र और पुराणों की माने तो कल्प मास मैं क्षीर सागर के स्वामी भगवान विष्णु के लिए आकाशदीप जलाकर स्तुति करने से अनंत यात्रा पर निकले जातकों के पुरखों का भी मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है.
पावन गंगा नदी पर बसे वाराणसी महानगर में आज भी लोग अपने पुरखों की आत्मा को शांति और जन्म मरण के भवर से उबारने के लिए भगवान विष्णु की स्थिति कर आकाशदीप जलाने की परंपरा का निर्वहन करते हैं. काशी के गंगा घाटों पर नृत्य आरती अनुष्ठान करने वालों की माने तो कल्प मास मैं प्रतिदिन अपने पुरखों के नाम का आकाशदीप जलाकर स्तुति करने से न केवल भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं बल्कि अनंत कॉल से भटक रहे पुरखों को अपने चरणों में स्थान भी देते हैं.
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आकाशदीप के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए गंगा घाट के महामंडलेश्वर कहते हैं कि घी के दिए को एक ऐसी टोकरी में रखा जाता है. टोकरी मैं रखें दीपक का विधि विधान से पूजन किया जाता है. बाद में इस टोकरी को आकाश में छोड़ दिया जाता है. इसी को आकाशदीप की संज्ञा दी जाती है.
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