वाराणसी : पदम श्री सम्मान पाकर स्मृति में खोए हैं प्रोफेसर रामयत्न शुक्ल
- राष्ट्रपति पुरस्कार केशव पुरस्कार महामहोपाध्याय पुरस्कार वाचस्पति पुरस्कार भाव भावेश्वर राष्ट्रीय पुरस्कार अभिनव पालनी पुरस्कार विशिष्ट पुरस्कार कर पात्र रत्न पुरस्कार सरस्वती पुत्र पुरस्कार पदम श्री पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके प्रोफेसर शुक्ल आज अपनी खुद की स्मृति में खोए हैं.
वाराणसी : पदम श्री विजेता प्रोफेसर राम यत्न शुक्ला का जन्म 15 जनवरी 1932 में काशी के माटी में हुआ था. साल 1961 में उन्होंने सन्यासी संस्कृत महाविद्यालय में बतौर प्राचार्य का कार्यभार संभाला. साल 1974 में वे संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त हुए. साल 1976 में उन्होंने संस्कृत विश्वविद्यालय छोड़कर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ज्वाइन कर लिया. साल 1978 में व्याकरण विभाग में बतौर उपाचार्य उन्होंने दोबारा संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में कार्यभार ग्रहण किया. साल 1982 में वह प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हो गए. प्रोफेसर राम यत्न शुक्ला उत्तर प्रदेश नाग कूप शास्त्रार्थ समिति सनातन संस्कृत संवर्धन परिषद के संस्थापक भी हैं.
यही नहीं वह पिछले 30 वर्षों से लगातार काशी विद्वत परिषद के अध्यक्ष भी हैं. अपने जीवन के के पहलुओं को याद करके प्रोफेसर राम रतन शुक्ला कहते हैं कि संस्कृत के छात्रों को हताश नहीं होना चाहिए. वह स्वयं संस्कृत के छात्र रहे हैं. आज संस्कृत से ही उन्हें बहुत कुछ मिला है. संस्कृत में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं. भारत को विश्व गुरु बनाने में संस्कृत का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा. सेवानिवृत्त होने के बाद भी आज तक वह शकुल धारा स्थित अपने निवास स्थान पर पढ़ाना उनकी दिनचर्या में शामिल है.
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कोरोना संक्रमण काल में प्रोफेसर राम यत्न शुक्ला ने ऑनलाइन शिक्षा प्रदान की और लगभग 50 वर्चुअल व्याख्यान भी दिए. अपनी उपलब्धि पर प्रोफेसर शुक्ल कहते हैं कि गुरु जी की ही शब्द प्रेरणा है कि आज मैं सब कुछ प्राप्त कर सका हूं.
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