काशी के मान महल वेधशाला का पर्यटन विभाग ने जारी किया पोस्टर

Smart News Team, Last updated: Sat, 12th Dec 2020, 4:20 PM IST
काशी में घूमने के लिए अधिक से अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्यटन विभाग ने 17वीं शताब्दी में बनी राजा जय सिंह द्वितीय काल के मान महल वेधशाला का पोस्टर जारी किया है. पर्यटन विभाग की ओर से पोस्टर के माध्यम से पर्यटन विभाग का मुख्य उद्देश्य है अधिक पर्यटकों को काशी आने के लिए निमंत्रित करना है.
पर्यटन विभाग ने 17वीं शताब्दी में बनी राजा जय सिंह द्वितीय काल के मान महल वेधशाला का पोस्टर जारी किया

वाराणसी. काशी पर्यटन विभाग की ओर से जारी किए गए पोस्टर में बताया गया है कि यह काशी में गंगा घाट पर स्थित है. इस वेधशाला की सहायता से समय का आकलन, मौसम का पूर्वानुमान के साथ ही चांद तारों की दूरी भी मापी जा सकती है. पोस्टर जारी करने का पर्यटन विभाग का मुख्य उद्देश्य अधिक संख्या में पर्यटकों को इस ओर आकर्षित करना तो है ही वही धार्मिक नगरी काशी के प्रति लोगों में उत्सुकता बढ़ाना भी है.

बता दें कि पर्यटन विभाग की ओर से पोस्टर में जिस मान महल वेधशाला का चित्र प्रकाशित किया गया है. उस वेधशाला को सन 1737 मैं जयपुर के संस्थापक सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने निर्माण कराया था. यह वेधशाला दशाश्वमेध घाट के निकट गंगा के पश्चिमी तट पर मान महल के दूसरे तल पर है जो राजस्थान आमेर के राजा जय सिंह के पूर्वज महाराजा मानसिंह ने इस महल को 1680 ईसवी में निर्माण कराया था. इस इस महल के निर्माण में वास्तु शिल्प की नायाब कारीगरी के साथ ही बलुआ पत्थरों का प्रयोग किया गया है.

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पेरिशेबल कार्गो सेंटर की स्थापना के बाद फल व सब्जी निर्यातक हब बन रहा वाराणसी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से इस महल को संरक्षित किया गया है इस कारण यह महल धरोहर के रूप में काशी के मान बिंदुओं में से एक है. पर्यटन विभाग की ओर से जो पोस्टर जारी किया गया है. इस पोस्टर में प्रदर्शन वेधशाला इसी महल के दूसरी मंजिल पर स्थापित है. इस वेधशाला की पहचान दिल्ली के जंतर मंतर से पूरी तरह मिलती है. मान महल की दूसरी मंजिल की छत पर पहला कदम रखते ही वेधशाला के दक्षिणी कोर पर पर्चे होता अर्ध परवलय की आकृति से अंकित दक्षिण उत्तर भित्ति यंत्र से जिससे ग्रह नक्षत्रों के अंतर और नतांस ना पाए जाते हैं. खास बात यह है कि तीन सदियां गुजर जाने के बाद भी अब तक इस वेधशाला के प्राचीन यंत्र आज भी सुरक्षित है.

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