बीएचयू आईआईटी में तैयार हुई अनोखी स्याही फर्जी डॉक्यूमेंट पहचानने में करेगी मदद
- विभाग में हर माह काफी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ व्यर्थ होते हैं जिनसे पर्यावरण को काफी नुकसान उठाना पड़ता है.इन अवशिष्ट पदार्थों से स्याही बनाकर ग्रीन केमेस्ट्री की अवधारणा को प्रस्तुत किया जा रहा है.
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वाराणसी. अब वह दिन दूर नहीं जब नकली नोटों और फर्जी डॉक्युमेंट की पहचान केवल एक अल्ट्रावायलेट किरणों को निकालने वाले यंत्र के सामने रख कर किया जा सकेगा. ऐसा संभव हुआ है बीएचयू आईआईटी के विज्ञानी द्वारा जिन्होंने एक ऐसी स्याही बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है जो कि दिन के उजाले में नहीं बल्कि 360 नैनो मीटर अल्ट्रा वायलेट किरणों के जरिये ही देखी जा सकती है. वहीं खास बात यह भी है कि प्रयोगशाला में शोध कार्य के बाद बचे जैविक अवशेषों से इस स्याही का निर्माण किया गया है.
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विभाग के केमिकल विज्ञानी डा. विशाल मिश्रा और उनके मार्गदर्शन में शोध कर रहे अनादि गुप्ता ने इस खोज का कापीराइट भी करा लिया है. इसके अलावा अमेरिका की प्रतिष्ठित केमिकल एजुकेशन जर्नल एसीएस पत्रिका ने इसे प्रकाशित करने के लिए स्वीकृति भी दे दी है. डा.विशाल मिश्रा ने बताया कि विभाग में हर माह काफी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ व्यर्थ होते हैं जिनसे पर्यावरण को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. इन अवशिष्ट पदार्थों से स्याही बनाकर ग्रीन केमेस्ट्री की अवधारणा को प्रस्तुत किया जा रहा है.
डा. मिश्रा ने बताया कि पाउडर को शुद्ध पानी मे मिलाकर ही इसका इस्तेमाल किया जाता है. यह बहुत कम लागत वाली केमिकल है जो सूक्ष्म जीवों के विकास का समर्थन करने के लिए बायो केमिस्ट्री, माइक्रो बॉयोलॉजी प्रयोगशाला में व्यापक रूप से उपयोग में किया जाता है. अल्ट्रावायलेट प्रकाश की कुछ तंरगदैर्घ्य के संपर्क में आने के बाद ही इस स्याही से लिखी लिखावट को देखा और पढ़ा जा सकता है.
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