Vivah Panchami 2021: विवाह पंचमी पर इस विधि से करें श्री जानकी-श्रीराम स्तुति, मिलेगा मनचाहा वर

Pallawi Kumari, Last updated: Mon, 6th Dec 2021, 5:13 PM IST
  •  मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान राम और माता सीता की वैवाहिक वर्षगांठ के रूप में विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाता है. इस बार विवाह पंचमी 8 दिसंबर को पड़ रही है. विवाह पंचमी के दिन अगर कुंवारी कन्या पूजा के साथ इस उपाय को करे तो उन्हें मनचाहा वर मिलता है.
विवाह पंचमी पर करें ये उपाय मिलेगा मनचाहा वर

विवाह पंचमी का त्योहार हर सास मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है. इस दिन माता सीता का स्वंयवर र्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के साथ हुआ था. राम-सीता के वैवाहिक वर्षगांठ के रूप में हर साल धूम धाम के साथ विवाह पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन राम-सीता की विशेष पूजा की जाती है और उनका स्वंयवर कराया जाता है. मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है और कुंवारी कन्या के विवाह में आ रही रुकावट दूर होती है. 

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन एक आसान सा उपाय करने पर आपको मनचाहा जीवनसाथी मिलने के योग बनते हैं. इस दिन पूजा करने के साथ अगर आप माता जानकी और श्रीराम की स्तुति करें तो कुंवरी कन्या को मनचाका वर मिलता है. यहां देखिए श्रीजानकी और श्रीराम की स्तुति पाठ का जाप .

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श्री जानकी स्तुति

जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।

जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।।

दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम्।

विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम्।।

भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम्।

पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम्।।

पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम्।

अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम्।।

आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम्।

प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम्।।

नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम्।

नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम्।।

पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्ष:स्थलालयाम्।

नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम्।।

आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम्।

नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम्।

सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा।।

श्रीराम स्तुति

श्रीरामचंद्र कृपालु भजमन हरण भव भयदारुणं।

नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर-कंज पद कन्जारुणं।।

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरज सुन्दरं।

पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरं।।

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकंदनं।

रघुनंद आनंदकंद कोशलचंद दशरथ-नन्दनं।।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरधूषणं।।

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।

मम ह्रदय-कंज निवास कुरु, कामादी खल-दल-गंजनं।।

मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरो।

करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।

एहि भांती गौरि असीस सुनी सिय सहित हियं हरषीं अली।

तुलसी भवानिही पूजि पुनी पुनी मुदित मन मंदिर चली।।

।।सोरठा।।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

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